बुजुर्गों का अकेलापन और बाल श्रम...
बुजुर्गों का अकेलापन और बाल श्रम...
आज की भागदौड़ भरी दुनिया में अकेलेपन और बच्चों की नौकरियों का मुद्दा गंभीरता से सोचने योग्य है। एक तरफ बुजुर्ग और अकेले होते लोग हैं, जिन्हें सामाजिक सहयोग की आवश्यकता होती है, तो दूसरी ओर ऐसे बच्चे हैं जिन्हें शिक्षा और बचपन के आनंद से दूर करके श्रम में झोंक दिया जाता है। इन दोनों समस्याओं का समाधान यदि एक साथ खोजा जाए, तो समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है।
समाज में एकाकी जीवन जीने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसके कई कारण हैं-
एकल परिवारों का प्रचलन बढ़ रहा है, जिससे बुजुर्ग माता-पिता अकेले रह जाते हैं।
युवा वर्ग अपने करियर में व्यस्त रहता है, जिससे बुजुर्गों को सामाजिक समर्थन कम मिलता है।
कई बुजुर्ग आर्थिक रूप से सक्षम होने के बावजूद अकेलेपन और डिप्रेशन का शिकार होते हैं।
बचपन छिनती नौकरियाँ...
दूसरी ओर, बाल श्रम समाज के लिए एक गंभीर समस्या बनी हुई है। कई गरीब बच्चे शिक्षा और खेल-कूद के अधिकार से वंचित होकर छोटी उम्र में ही काम करने लगते हैं। इसके कई कारण हैं जैसे
परिवार की खराब आर्थिक स्थिति के चलते बच्चे कमाने को मजबूर होते हैं।
कई माता-पिता अशिक्षित होते हैं और बच्चों की शिक्षा को जरूरी नहीं समझते।
कई उद्योगों में आज भी बच्चों से काम करवाया जाता है, खासकर असंगठित क्षेत्रों में।
दोनों समस्याओं का समाधान एक साथ संभव...
अगर सही योजना बनाई जाए, तो अकेलेपन की समस्या और बाल श्रम दोनों का समाधान किया जा सकता है। कुछ सुझाव –
1. अनाथ या गरीब बच्चों के लिए वृद्धाश्रमों में रहने की व्यवस्था – इससे बच्चों को रहने की जगह मिलेगी और बुजुर्गों को परिवार जैसा माहौल मिलेगा।
2. स्कूलों और एनजीओ का सहयोग – बाल श्रम रोकने के लिए एनजीओ और समाज को मिलकर काम करना होगा।
3. बुजुर्गों को बच्चों की शिक्षा और देखभाल में शामिल करना – बुजुर्गों को बच्चों को पढ़ाने और संस्कार देने का अवसर दिया जाए।
4. सरकारी योजनाओं और CSR गतिविधियों को मजबूत करना – कंपनियों को ऐसे प्रोजेक्ट्स में निवेश करने के लिए प्रेरित करना चाहिए जो इन दोनों समस्याओं को एक साथ हल करें।
और अंत में...
अकेलेपन और बाल श्रम दोनों ही गंभीर सामाजिक समस्याएँ हैं, लेकिन सही नीति और सामूहिक प्रयास से इन्हें हल किया जा सकता है। यदि बुजुर्गों और वंचित बच्चों को एक साथ जोड़कर एक नई सामाजिक संरचना बनाई जाए, तो यह दोनों के लिए लाभदायक होगा। समाज के हर व्यक्ति को इस दिशा में सोचने और योगदान देने की जरूरत है ताकि आने वाली पीढ़ियाँ एक बेहतर और संवेदनशील समाज में जी सकें।
डॉ मनीष वैद्य!
सचिव
वृद्ध सेवा आश्रम, रांची