भारत में आरक्षण,जातीय नहीं, सिर्फ आर्थिक आधार पर क्यों...?--------------------------
भारत में आरक्षण,जातीय नहीं, सिर्फ आर्थिक आधार पर क्यों...?
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भारत में आरक्षण नीति का मूल उद्देश्य वंचित समुदायों को समान अवसर प्रदान करना था, लेकिन आज यह एक विवादास्पद विषय बन चुका है। वर्तमान में आरक्षण जातिगत आधार पर दिया जाता है, जिसका उद्देश्य ऐतिहासिक अन्याय को दूर करना था। हालांकि, बदलते समय और सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए अब आरक्षण को केवल आर्थिक आधार पर देने की आवश्यकता है।
आरक्षण की शुरुआत स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के उत्थान के लिए की गई थी। बाद में, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को भी इसमें जोड़ा गया। इसका उद्देश्य उन वर्गों को मुख्यधारा में लाना था, जो सदियों से शिक्षा और रोजगार में पीछे थे। लेकिन आज, जब कुछ जातियों के लोग आर्थिक रूप से समृद्ध हो चुके हैं, वहीं कुछ अन्य जातियों के लोग अब भी गरीब हैं, तो केवल जाति के आधार पर आरक्षण देना न्यायसंगत नहीं लगता।
वर्तमान समय में गरीब केवल SC, ST, OBC में ही नहीं, बल्कि सामान्य वर्ग में भी बड़ी संख्या में हैं। जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, उन्हें समान अवसर मिलना चाहिए, चाहे वे किसी भी जाति के हों।
जातिगत आरक्षण के कारण कई बार कम योग्यता वाले लोग उच्च शिक्षा और नौकरियों में चयनित हो जाते हैं, जबकि अधिक योग्य उम्मीदवार अवसरों से वंचित रह जाते हैं। आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू करने से इस असंतुलन को सुधारा जा सकता है।
जातिगत आरक्षण समाज में विभाजन को बढ़ावा देता है और एक-दूसरे के प्रति असंतोष उत्पन्न करता है। यदि आरक्षण आर्थिक आधार पर होगा, तो यह सभी गरीब वर्गों को समान रूप से लाभान्वित करेगा और समाज में एकता बनी रहेगी।
यदि आरक्षण आर्थिक रूप से पिछड़ों को दिया जाए, तो इसका सीधा लाभ उन लोगों को मिलेगा, जिन्हें वास्तव में इसकी आवश्यकता है, चाहे वे किसी भी जाति से हों। इससे सामाजिक न्याय की अवधारणा भी मजबूत होगी।
1. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को ही आरक्षण का लाभ दिया जाए...
पारिवारिक आय, संपत्ति, शिक्षा स्तर आदि के आधार पर पात्रता तय हो।
जाति के बजाय गरीबी को मानक बनाया जाए।
2. सभी जातियों के गरीबों को आरक्षण का समान लाभ मिले...
वर्तमान में सामान्य वर्ग के गरीबों को 10% EWS आरक्षण मिलता है, जबकि अन्य वर्गों को पहले से अधिक आरक्षण है। इसे संतुलित कर सभी वर्गों के गरीबों को समान आरक्षण दिया जाए।
3. आरक्षण की समयसीमा तय हो...
जातिगत आरक्षण को चरणबद्ध तरीके से खत्म कर केवल आर्थिक आरक्षण लागू किया जाए।
आरक्षण का लाभ केवल एक या दो पीढ़ियों तक सीमित रखा जाए, ताकि यह वंशानुगत न बने।
4. आरक्षण के बजाय गुणवत्ता सुधार पर जोर...
शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार किया जाए, जिससे हर वर्ग के गरीब बच्चे प्रतिस्पर्धा कर सकें।
सरकारी स्कूलों और कॉलेजों को उच्च गुणवत्ता का बनाया जाए।
और अंत में...
जातिगत आरक्षण की नीति अपने उद्देश्य में सफल रही या नहीं, इस पर बहस हो सकती है, लेकिन यह स्पष्ट है कि अब इसे बदलने की जरूरत है। भारत में आर्थिक असमानता एक बड़ा मुद्दा है, और आरक्षण का लाभ उन सभी को मिलना चाहिए जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, न कि केवल एक जाति विशेष को। इस परिवर्तन से सामाजिक एकता को बढ़ावा मिलेगा और भारत सही मायनों में अवसरों की समानता वाला देश बन सकेगा।
अब समय आ गया है कि आरक्षण की पुनर्समीक्षा की जाए और इसे केवल आर्थिक आधार पर लागू किया जाए, ताकि समाज में सच्ची समानता और न्याय स्थापित हो सके।
डॉ मनीष वैद्य।
सचिव
वृद्ध सेवा आश्रम, रांची