"मानसिक विकास की वह ऊँचाई, जहाँ लोग आपको समझने के लिए खुद को बदलें"
आज के इस तेजी से बदलते युग में हर कोई चाहता है कि लोग उसे समझें, सराहें और स्वीकार करें। पर क्या हमने कभी सोचा है कि क्या हम स्वयं को उस स्तर पर ले जा सके हैं जहाँ हमारी सोच, हमारी दृष्टि और हमारे मूल्यों को समझने के लिए लोगों को अपनी सोच का विस्तार करना पड़े?
"अपने-आपको मानसिक रूप से इतना विकसित करें की लोग आपको समझने के लिए अपने खोपड़ी को विकसित करने की कोशिश करें" — यह कोई घमंड नहीं, बल्कि आत्मविकास की पराकाष्ठा है।
मानसिक विकास क्या है?
मानसिक विकास का अर्थ सिर्फ किताबें पढ़ लेना, डिग्रियाँ अर्जित कर लेना या तर्कशील बातें करना नहीं है। यह तो अपने अनुभवों से सीखना, अपने भीतर की सीमाओं को चुनौती देना, और हर परिस्थिति में समभाव बनाए रखने की कला है।
आप क्यों विकसित हों?
क्योंकि दुनिया को बदलने का सबसे असरदार तरीका खुद को बदलना है। जब आप स्वयं को ऊँचाई पर ले जाते हैं — सोच में, व्यवहार में, दृष्टिकोण में — तब आपकी उपस्थिति ही एक संवाद बन जाती है। फिर आपको लोगों को समझाने की जरूरत नहीं पड़ती, लोग खुद आपको समझने की कोशिश करने लगते हैं।
जब आप अलग दिखते हैं…
जब आपकी सोच भीड़ से अलग होती है, जब आप ऊँचाई से सोचते हैं, तो यह स्वाभाविक है कि लोग आपको पहले गलत समझेंगे, आपकी आलोचना करेंगे। लेकिन समय के साथ वही आलोचक आपसे प्रेरणा लेने लगते हैं — बशर्ते आप डटे रहें, और लगातार सीखते रहें।
कैसे बढ़ाएँ अपना मानसिक स्तर?
1. नित्य अध्ययन करें – ज्ञान से ही दृष्टिकोण विकसित होता है।
2. सकारात्मक संगति रखें – जैसे संग वैसे रंग।
3. आलोचना से न घबराएँ – आलोचना मानसिक विकास का ईंधन है।
4. धैर्य और विवेक से काम लें – हर प्रतिक्रिया आवश्यक नहीं होती।
5. गंभीर आत्मचिंतन करें – आत्मा का आईना भीतर है, बाहर नहीं।
अंत में…
जिस दिन आप इस स्तर पर पहुँच जाते हैं कि आपकी बात को समझने के लिए किसी को अपनी सोच का स्तर ऊँचा करना पड़े — उस दिन आपने केवल खुद को नहीं, समाज की सोच को भी विकसित करने का बीड़ा उठा लिया होता है।
विचार करिए — आप खुद को कितना मानसिक रूप से समृद्ध बना चुके हैं? क्या आप उस ऊँचाई पर हैं जहाँ लोग खुद को बदलने को प्रेरित हों?
मनीष वैद्य
सचिव
वृद्ध सेवा आश्रम (VSA)