भारत में दहेज प्रथा...


भारत में दहेज प्रथा एक सामाजिक समस्या है, जिसकी जड़ें पुरानी परंपराओं और सांस्कृतिक मान्यताओं में हैं। हालांकि कुछ लोग इसे शादी के दौरान दिया जाने वाला "उपहार" या "सहयोग" मानते हैं, वास्तविकता में यह प्रथा अक्सर महिलाओं के लिए शोषण और भेदभाव का कारण बनती है।

दहेज प्रथा के नकारात्मक प्रभाव:

1. महिलाओं पर अत्याचार: दहेज की मांग पूरी न होने पर महिलाओं को मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। दहेज हत्या और आत्महत्या जैसी घटनाएं भी इसका परिणाम हैं।

2. आर्थिक बोझ: कई परिवारों पर दहेज देने का इतना दबाव होता है कि वे अपनी संपत्ति बेचने या कर्ज लेने पर मजबूर हो जाते हैं।

3. लिंग भेदभाव: दहेज प्रथा लड़कियों को "आर्थिक बोझ" के रूप में देखने की सोच को बढ़ावा देती है, जिससे गर्भ में कन्या भ्रूण हत्या जैसी घटनाएं होती हैं।

4. सामाजिक असमानता: यह प्रथा गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए विशेष रूप से हानिकारक है, क्योंकि अमीर परिवार बड़ी रकम और संपत्ति देकर इस परंपरा को बनाए रखते हैं।

क्या दहेज प्रथा सही है?

दहेज प्रथा का कोई नैतिक या सामाजिक आधार नहीं है। यह मानवाधिकारों का उल्लंघन करती है और लैंगिक समानता के खिलाफ है।

भारत में कानूनी स्थिति:

भारत में दहेज प्रथा को खत्म करने के लिए दहेज निषेध अधिनियम, 1961 लागू किया गया है। इस कानून के तहत दहेज लेना, देना या मांगना अपराध है।
इसके अलावा, महिलाओं की सुरक्षा के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 498A और घरेलू हिंसा अधिनियम का प्रावधान भी किया गया है।

समाज में बदलाव कैसे हो?

1. शिक्षा और जागरूकता: समाज में लड़कियों और लड़कों को समान रूप से शिक्षित करना और महिलाओं के अधिकारों के प्रति जागरूक करना आवश्यक है।

2. सामाजिक आंदोलन: दहेज प्रथा के खिलाफ जागरूकता फैलाने और इसे बंद करने के लिए समाज के हर वर्ग को सहयोग करना होगा।

3. आत्मनिर्भरता: लड़कियों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि वे अपनी शादी और जीवन के लिए किसी पर निर्भर न रहें।

4. सख्त कानून लागू करना: दहेज से संबंधित अपराधों पर सख्त कार्रवाई और कानूनी प्रक्रिया को मजबूत करना चाहिए।

निष्कर्ष:

दहेज प्रथा का न तो कोई नैतिक आधार है और न ही यह सामाजिक रूप से सही है। यह प्रथा महिलाओं और उनके परिवारों के लिए अत्यधिक हानिकारक है और इसे पूरी तरह समाप्त करने के लिए समाज, गैर सरकारी संस्थाओं, सरकार और व्यक्तिगत स्तर पर प्रयासों की जरूरत है।

धन्यवाद!

डाॅ मनीष वैद्य 
सचिव "वृद्ध सेवा आश्रम" राँची, झारखंड

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