कुंभ मेला और सनातन धर्म: आस्था, परंपरा और संस्कृति का महासंगम...
परिचय
कुंभ मेला सनातन धर्म की आस्था, परंपरा और सांस्कृतिक समृद्धि का सबसे भव्य प्रतीक है। यह मेला न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि विश्व के सबसे बड़े आध्यात्मिक समागमों में से एक है, जहाँ करोड़ों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। कुंभ मेले का आयोजन हर 12 वर्ष में चार प्रमुख स्थानों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक—में होता है।
कुंभ मेले का महत्व
सनातन धर्म में कुंभ मेले का विशेष महत्व है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत कलश निकला, तब देवताओं और असुरों के बीच इसे प्राप्त करने के लिए संघर्ष हुआ। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें इन चार स्थानों पर गिरीं, जिससे ये तीर्थस्थल विशेष रूप से पवित्र माने जाते हैं। कुंभ मेले में स्नान करने से मोक्ष प्राप्ति की मान्यता है, और इसलिए यह करोड़ों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
सनातन धर्म और कुंभ मेले का आध्यात्मिक पक्ष
सनातन धर्म केवल पूजा-पद्धति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक संपूर्ण जीवनशैली और दर्शन है। कुंभ मेले के दौरान संतों, साधुओं और विचारकों के प्रवचन होते हैं, जहाँ वे वेद, उपनिषद, भगवद्गीता और अन्य धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या करते हैं। यह ज्ञान और आत्मशुद्धि का अवसर प्रदान करता है, जहाँ भक्ति, योग, साधना और समाज कल्याण पर बल दिया जाता है।
कुंभ मेले की सामाजिक और सांस्कृतिक भूमिका
कुंभ मेला भारत की सांस्कृतिक विविधता को भी प्रदर्शित करता है। यह आध्यात्मिकता के साथ-साथ समाज सेवा और जनजागृति का भी मंच बनता है। यहाँ धार्मिक प्रवचनों के अलावा, विभिन्न संस्कृतिक कार्यक्रमों, लोक परंपराओं और आध्यात्मिक चर्चाओं का आयोजन किया जाता है।
वैश्विक प्रभाव और आधुनिक युग में कुंभ
आज के डिजिटल युग में कुंभ मेले का प्रभाव सीमित नहीं है, बल्कि इसका वैश्विक प्रचार हो रहा है। कई विदेशी शोधकर्ता, योगी और पर्यटक इस मेले में भाग लेने आते हैं। सरकारें और सामाजिक संगठन भी इसके आयोजन में सहयोग करते हैं, जिससे यह आयोजन और व्यवस्थित तथा भव्य बनता जा रहा है।
निष्कर्ष
कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सनातन धर्म की जीवंतता और सांस्कृतिक विरासत का भव्य प्रतीक है। यह आत्मशुद्धि, ज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति का अवसर प्रदान करता है, जो मानवता के कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है। कुंभ मेले में सम्मिलित होना सनातन धर्म की अनंत परंपरा से जुड़ने का एक माध्यम है, जो न केवल व्यक्ति की आस्था को मजबूत करता है, बल्कि समाज को भी एकता और शांति का संदेश देता है।
डॉ मनीष वैद्य।
सचिव "वृद्ध सेवा आश्रम",रांची