जादू-टोना, झाड़-फूंक: अंधविश्वास और कानून

भारत में आज भी कई हिस्सों में जादू-टोना, झाड़-फूंक और टोटकों पर विश्वास किया जाता है। यह सिर्फ अंधविश्वास का ही मामला नहीं है, बल्कि कई बार इससे गंभीर सामाजिक और कानूनी समस्याएँ भी उत्पन्न होती हैं।

अंधविश्वास और समाज पर प्रभाव

1. शोषण और ठगी – कई तथाकथित ओझा, तांत्रिक और बाबा लोगों की भावनाओं से खेलकर उन्हें ठगते हैं।


2. महिला उत्पीड़न – कई स्थानों पर महिलाओं को ‘डायन’ बताकर प्रताड़ित किया जाता है, जिससे उनकी हत्या तक कर दी जाती है।


3. स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ – बीमारियों के इलाज के नाम पर झाड़-फूंक करने से लोग उचित चिकित्सा से वंचित रह जाते हैं, जिससे जान का खतरा भी हो सकता है।


4. संकीर्ण मानसिकता का प्रसार – ये अंधविश्वास तर्क और विज्ञान के विरोध में जाते हैं, जिससे समाज में जागरूकता और विकास बाधित होता है।



कानूनी पहलू: जादू-टोना और झाड़-फूंक पर प्रतिबंध

भारत में कई कानून इन अंधविश्वासों पर रोक लगाने के लिए बनाए गए हैं:

1. आईपीसी की धारा 420 – यदि कोई व्यक्ति झूठे दावे करके जादू-टोना या झाड़-फूंक के नाम पर ठगी करता है, तो उसे 7 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।


2. डायन प्रथा विरोधी कानून – झारखंड, बिहार, ओडिशा और असम में महिलाओं को डायन बताकर प्रताड़ित करने वालों के लिए सख्त सजा का प्रावधान है।


3. महाराष्ट्र अंधश्रद्धा उन्मूलन अधिनियम (2013) – महाराष्ट्र में नरेंद्र दाभोलकर के प्रयासों से यह कानून बना, जो अंधविश्वास फैलाने और झाड़-फूंक करने वालों पर कार्रवाई सुनिश्चित करता है।


4. ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट, 1954 – यह कानून झूठे दावे करने वाली औषधियों और चमत्कारी इलाजों के प्रचार-प्रसार पर रोक लगाता है।



समाज को क्या करना चाहिए?

शिक्षा और जागरूकता बढ़ाना ताकि लोग वैज्ञानिक सोच अपनाएँ और इन ढोंगियों के झांसे में न आएँ।

कानूनी कार्रवाई को मजबूत करना ताकि अंधविश्वास फैलाने वालों पर सख्त सजा हो।

मीडिया और सामाजिक संगठनों की भागीदारी ताकि अंधविश्वास से जुड़े मामलों को उजागर किया जा सके।

निष्कर्ष... 

जादू-टोना और झाड़-फूंक अज्ञानता और अंधविश्वास की निशानी है, जिसका समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह न केवल सामाजिक पिछड़ेपन को बढ़ावा देता है, बल्कि कई बार निर्दोष लोगों की जान भी ले लेता है। ऐसे में, कानूनों का कड़ाई से पालन करवाना और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना अत्यंत आवश्यक है।

डॉ मनीष वैद्य। 
सचिव 
वृद्ध सेवा आश्रम, रांची 

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