व्यावहारिक जीवन, सफलता और संतुलन का वास्तविक रास्ता...

आज के दौर में जहाँ ज्ञान और सूचनाओं की भरमार है, वहीं व्यावहारिकता जीवन की सबसे जरूरी जरूरत बन गई है। कोई व्यक्ति कितना भी पढ़ा-लिखा क्यों न हो, जब तक वह व्यवहारिक रूप से चीजों को समझकर उनका सामना करना नहीं सीखता, तब तक जीवन में सफलता अधूरी ही रहती है।

1. व्यावहारिकता क्या है?
व्यावहारिकता का अर्थ है – परिस्थितियों के अनुसार अपने विचारों, निर्णयों और व्यवहार को ढालना। यह सिद्धांतों से समझौता किए बिना, समय और स्थिति के अनुसार निर्णय लेने की कला है।

2. शिक्षा और व्यवहार का तालमेल...
महज किताबों का ज्ञान जीवन की जटिलताओं को नहीं सुलझा सकता। उदाहरण के लिए, यदि कोई इंजीनियर तकनीकी रूप से बहुत योग्य है लेकिन टीम के साथ तालमेल नहीं बैठा सकता, तो उसका ज्ञान अधूरा माना जाएगा। इसलिए, व्यवहारिक बुद्धिमत्ता हर क्षेत्र में जरूरी है।

3. रिश्तों में व्यावहारिकता...
रिश्तों को निभाने में भावनाएं जरूरी हैं, लेकिन केवल भावना से नहीं, व्यावहारिक सोच से ही रिश्ते टिकाऊ बनते हैं। हर बार खुद को सही मानने की बजाय, दूसरों की परिस्थिति को समझना, समय पर संवाद करना और गलती होने पर माफी मांगना – यही व्यावहारिक दृष्टिकोण है।

4. आर्थिक व्यवहारिकता...
कमाई चाहे जितनी हो, सही योजना और अनुशासन के बिना धन हाथ से फिसल सकता है। बजट बनाना, जरूरत और चाहत में फर्क समझना, निवेश करना और भविष्य की योजना बनाना – ये सब आर्थिक व्यावहारिकता के अंग हैं।

5. समस्याओं का समाधान...
हर व्यक्ति को जीवन में समस्याएं आती हैं, लेकिन व्यावहारिक व्यक्ति घबराने की बजाय समाधान खोजता है। वह "क्यों हुआ" पर कम और "अब क्या करना है" पर ज्यादा ध्यान देता है।

और अंत में...
व्यावहारिक जीवन का तात्पर्य केवल समस्याओं से निपटना नहीं, बल्कि जीवन को बेहतर ढंग से जीना भी है। यह सोच का तरीका है, जो इंसान को हर परिस्थिति में संतुलन बनाए रखने और सही निर्णय लेने की शक्ति देता है।

डॉ मनीष वैद्य!
सचिव 
वृद्ध सेवा आश्रम, रांची

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