व्यवहारिकता, नैतिक मूल्य और मनुष्य की समाज व देश के प्रति जिम्मेदारी...

मनुष्य मात्र एक व्यक्तिगत इकाई नहीं है, बल्कि समाज और राष्ट्र का अनिवार्य हिस्सा है। उसका जीवन केवल अपनी आवश्यकताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि वह समाज के विकास और देश की उन्नति में भी सहभागी है। व्यवहारिकता, नैतिक मूल्य और सामाजिक जिम्मेदारी — ये तीनों उसकी संपूर्णता को परिभाषित करते हैं।

व्यवहारिकता जीवन जीने की वह कला है, जिसमें आदर्श और यथार्थ के बीच संतुलन बना रहता है। केवल सपनों में खोकर या कठोर व्यावसायिक सोच से ग्रसित होकर हम एक स्वस्थ समाज का निर्माण नहीं कर सकते। व्यवहारिक व्यक्ति परिस्थितियों के अनुरूप सोचता है, समाधान खोजता है, और दूसरों के दृष्टिकोण को भी समझता है। व्यवहारिकता में केवल स्वहित नहीं, समष्टि का भी ध्यान रखा जाता है।

नैतिक मूल्य जीवन का मूल आधार हैं। सत्य, अहिंसा, करुणा, न्याय, ईमानदारी जैसे मूल्य न केवल व्यक्तिगत चरित्र को ऊँचा उठाते हैं, बल्कि समाज को भी सुदृढ़ बनाते हैं। जब व्यक्ति अपने आचरण में नैतिकता का पालन करता है, तो वह समाज में विश्वास और सौहार्द का वातावरण निर्मित करता है। नैतिक मूल्य दीर्घकालिक दृष्टि प्रदान करते हैं — जो व्यक्ति या राष्ट्र अपने नैतिक आधार को मजबूत रखता है, वह समय की कसौटी पर खरा उतरता है।

समाज और देश के प्रति जिम्मेदारी केवल शब्दों में नहीं, कर्मों में प्रकट होनी चाहिए। नागरिकों का कर्तव्य है कि वे न केवल अपने अधिकार माँगें, बल्कि अपने कर्तव्यों का भी ईमानदारी से निर्वहन करें। स्वच्छता, कर भुगतान, कानून का पालन, मताधिकार का उपयोग, सामाजिक सेवा — ये सब जिम्मेदार नागरिकता के अंग हैं। एक सजग नागरिक अपने आसपास जागरूकता फैलाता है, गलत का विरोध करता है, और देश के विकास में सक्रिय भूमिका निभाता है।

आज के समय में, जब दुनिया तेजी से बदल रही है, तब व्यवहारिकता के साथ नैतिक मूल्यों का संरक्षण और समाज के प्रति जिम्मेदार आचरण पहले से कहीं अधिक आवश्यक हो गया है। यदि प्रत्येक व्यक्ति इन सिद्धांतों को अपने जीवन में आत्मसात करे, तो न केवल उसका अपना जीवन समृद्ध होगा, बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होगा।

अंत में, मनुष्य का वास्तविक उत्थान तभी संभव है जब वह व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज और देश के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए उच्च नैतिक आदर्शों का पालन करे। यही सच्चा नागरिक धर्म है और यही एक सशक्त, समृद्ध भारत की आधारशिला है।

डॉ मनीष वैद्य!
सचिव 
वृद्ध सेवा आश्रम, रांची

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