देश के बुजुर्गों की दुर्दशा: आर्थिक सुरक्षा आज की सबसे बड़ी चुनौती
भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ जनसंख्या तेजी से वृद्धावस्था की ओर बढ़ रही है, वहाँ बुजुर्गों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति एक गंभीर चिंता का विषय बन चुकी है। हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के 60 वर्ष से अधिक आयु के 40% से अधिक बुजुर्ग या तो गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं या फिर अपनी बुनियादी आवश्यकताओं के लिए दूसरों पर निर्भर हैं। यह स्थिति न केवल उनके व्यक्तिगत सम्मान और आत्मनिर्भरता को चोट पहुँचाती है, बल्कि सामाजिक व्यवस्था पर भी प्रश्नचिह्न लगाती है।
बढ़ती उम्र, घटती सुरक्षा
रिपोर्ट के अनुसार:
60% से अधिक बुजुर्गों ने अपनी आर्थिक स्थिति को 'खराब' या 'औसत' बताया।
36% बुजुर्ग रिटायरमेंट के बाद भी काम कर रहे हैं — यह उनकी मजबूरी को दर्शाता है, न कि सक्रियता को।
मात्र 8.6% बुजुर्गों को ही कार्य से संबंधित पेंशन मिल रही है।
70% से अधिक वृद्ध महिलाएँ अपनी बुनियादी आवश्यकताओं जैसे भोजन, दवाइयाँ, कपड़े, और आश्रय के लिए दूसरों पर निर्भर हैं।
इन आंकड़ों से साफ है कि भारत में बुजुर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा तंत्र या तो बेहद कमजोर है या अधिकांश तक पहुँच नहीं पा रहा है।
कारण: असंगठित क्षेत्र और बचत की कमी
इस दुर्दशा के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत की एक बड़ी आबादी जीवन भर असंगठित क्षेत्र में काम करती है जहाँ पेंशन या रिटायरमेंट लाभ की कोई व्यवस्था नहीं होती। ऐसे में वृद्धावस्था तक आते-आते उनके पास न तो कोई बचत होती है और न ही कोई आय का सुनिश्चित स्रोत।
सामाजिक अलगाव और स्वास्थ्य संकट
आर्थिक समस्याओं के साथ-साथ बुजुर्गों को सामाजिक अलगाव और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। बदलती पारिवारिक संरचना और एकल परिवारों की ओर झुकाव ने बुजुर्गों की उपेक्षा को और भी बढ़ाया है।
समाधान की दिशा में
भारत सरकार को चाहिए कि वह बुजुर्गों की आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के लिए ठोस योजनाएँ बनाए। कुछ सुझाव इस प्रकार हैं:
1. सार्वभौमिक पेंशन योजना – जिससे असंगठित क्षेत्र के बुजुर्गों को भी नियमित आर्थिक सहायता मिल सके।
2. वरिष्ठ नागरिक स्वास्थ्य बीमा योजना का विस्तार और प्रभावी क्रियान्वयन।
3. कम्युनिटी आधारित सहायता केंद्रों की स्थापना, जहाँ बुजुर्ग अपनी सामाजिक गतिविधियों में भाग ले सकें।
4. एनजीओ और समाज की भागीदारी बढ़ाई जाए ताकि जरूरतमंद बुजुर्गों तक मदद पहुँचे।
निष्कर्ष
एक सभ्य समाज की पहचान उसकी बुजुर्गों के प्रति जिम्मेदारी से होती है। अगर हम आज इनके प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते, तो कल हम भी इसी उपेक्षा का शिकार हो सकते हैं। अतः यह समय है कि सरकार, समाज और प्रत्येक नागरिक मिलकर यह सुनिश्चित करें कि वृद्धजन सम्मानजनक, सुरक्षित और आत्मनिर्भर जीवन जी सकें।
डॉ. मनीष वैद्य
सचिव
वृद्ध सेवा आश्रम, रांची
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