आखिर किसी का बहुत विरोधी क्यों होते हैं?लेखक: डॉ. मनीष वैद्य
मानव समाज में विरोध एक सामान्य प्रक्रिया है, परंतु जब यह विरोध चरम रूप ले लेता है और किसी के प्रति विशेष रूप से द्वेष या कटुता में बदल जाता है, तो यह विचारणीय बन जाता है कि आखिर किसी का इतना विरोध क्यों होता है?
1. विचारों की टकराहट
विरोध का सबसे सामान्य कारण वैचारिक असहमति है। जब दो लोग या समूह अलग-अलग सोच और दृष्टिकोण रखते हैं, तो मतभेद स्वाभाविक होते हैं। राजनीति, धर्म, सामाजिक मुद्दे या जीवनशैली—हर क्षेत्र में यह देखा जा सकता है। कई बार यह असहमति स्वस्थ बहस तक सीमित रहती है, लेकिन जब अहं और कट्टरता जुड़ जाती है, तो वह तीखा विरोध बन जाता है।
2. ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा
सफलता, लोकप्रियता या प्रभाव किसी व्यक्ति को जितनी ऊँचाई देती है, उतने ही विरोधी भी। जो लोग खुद उस मुकाम तक नहीं पहुँच पाते, वे अक्सर अंदर ही अंदर जलन या असुरक्षा महसूस करते हैं और उस व्यक्ति के विरोध में खड़े हो जाते हैं।
3. पुराने अनुभव या भावनात्मक चोट
कभी-कभी व्यक्तिगत जीवन में घटित घटनाएँ किसी के प्रति गहरा विरोध पैदा कर देती हैं। यदि किसी ने किसी को धोखा दिया हो, अपमानित किया हो या ठेस पहुँचाई हो, तो वह व्यक्ति भावनात्मक रूप से उसका विरोधी बन सकता है।
4. प्रभाव जमाने की प्रवृत्ति
कुछ लोग विरोध का उपयोग अपने प्रभाव और शक्ति दिखाने के लिए करते हैं। वे जानते हैं कि किसी प्रभावशाली व्यक्ति या विचार का विरोध करके वे चर्चा में आ सकते हैं। यह 'विरोध के माध्यम से प्रसिद्धि' की मानसिकता है।
5. गलतफहमियाँ और अफवाहें
कई बार विरोध का कोई वास्तविक आधार नहीं होता। केवल सुनी-सुनाई बातें, अफवाहें या किसी की छवि बिगाड़ने की कोशिशों से भी विरोध खड़ा हो जाता है। बिना सच्चाई जाने, लोग केवल एकतरफा सूचना के आधार पर विरोध करने लगते हैं।
6. भीड़ की मानसिकता
समाज में कई लोग खुद निर्णय नहीं लेते, वे केवल भीड़ का अनुसरण करते हैं। यदि कोई व्यक्ति या समूह किसी के विरोध में है, तो अन्य भी केवल उसी दिशा में चल पड़ते हैं, चाहे उन्हें असली कारण का पता हो या नहीं।
निष्कर्ष
विरोध होना स्वाभाविक है, परंतु अंध-विरोध, द्वेष और नकारात्मकता समाज को पीछे ले जाती है। ज़रूरत है सोच-समझकर विरोध करने की—जहाँ तथ्य, तर्क और संवाद हो, और जहां आलोचना के साथ समाधान का रास्ता भी निकले।
यदि हम सीखें कि मतभेद का मतलब दुश्मनी नहीं होता, तो शायद समाज में विरोध कम और समझ अधिक हो।
डॉ मनीष वैद्य!
सचिव
वृद्ध सेवा आश्रम, रांची