धर्म या कर्म: कौन अधिक महत्वपूर्ण?
मनुष्य के जीवन में धर्म और कर्म दोनों ही अत्यंत आवश्यक हैं, पर जब प्रश्न आता है – धर्म बड़ा या कर्म, तो उत्तर सीधा नहीं, गहराई से विचार करने योग्य है।
धर्म क्या है?
धर्म का अर्थ अक्सर संप्रदाय, पूजा-पद्धति या रीति-रिवाजों से जोड़ दिया जाता है, जबकि मूलतः धर्म का अर्थ है – कर्तव्य, मर्यादा, और सच्चाई के मार्ग पर चलना। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा भी है – “धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे”, अर्थात जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है, तब मैं स्वयं प्रकट होता हूँ।
कर्म क्या है?
कर्म का अर्थ है कृया, कार्य या प्रयास। जो हम हर दिन करते हैं – वह कर्म है। हमारी सोच, हमारी नीयत और हमारे कार्य – सब कुछ हमारे कर्म के दायरे में आता है। गीता में ही श्रीकृष्ण ने कहा – “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”, यानी मनुष्य को केवल अपने कर्म करने का अधिकार है, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।
धर्म बिना कर्म अधूरा है, और कर्म बिना धर्म दिशाहीन
यदि कोई केवल धर्म का पालन करता है पर अपने कर्मों में ईमानदार नहीं है, तो उसका धर्म केवल दिखावा है।
और यदि कोई कर्मशील है, पर उसके कर्मों में नैतिकता, दया और सेवा का भाव नहीं – तो वह कर्म पशु प्रवृत्ति बन जाता है।
उदाहरणस्वरूप, कोई व्यक्ति मंदिर में जाकर पूजा करता है, घंटों भजन करता है, पर घर लौटकर वृद्ध माता-पिता की उपेक्षा करता है – तो ऐसा धर्म किस काम का?
वहीं, एक और व्यक्ति है जो किसी पंथ में विश्वास नहीं करता, पर दिन-रात जरूरतमंदों की सेवा करता है, सच्चाई से जीता है – तो क्या वह अधर्मी कहलाएगा?
व्यवहारिक दृष्टिकोण:
आज की दुनिया में धर्म के नाम पर भेदभाव, दंगे और भ्रम फैलाए जा रहे हैं, जबकि कर्म करने की भावना कमजोर हो रही है।
हमें समझना होगा कि धर्म का असली उद्देश्य है – अच्छे कर्मों की प्रेरणा देना। धर्म कोई ‘ड्रेस कोड’ नहीं, बल्कि एक जीवन जीने की शैली है।
निष्कर्ष:
✅ धर्म, सही दिशा है –
✅ कर्म, चलने की गति है –
✅ और दोनों का संतुलन ही जीवन की सफलता है।
यदि धर्म दीपक है तो कर्म उसकी लौ है।
धर्म केवल पढ़ने की चीज नहीं, जीने की चीज है – और वह तभी जीवंत होता है जब हमारे कर्म उससे मेल खाते हों।
इसलिए,
👉 धर्म की बात करना आसान है,
👉 धर्म के अनुसार कर्म करना ही सच्ची साधना है।
🌱 आइए, संकल्प लें – कि हम धर्म की गहराई को समझें और उसे अपने कर्मों से सार्थक करें। यही सच्ची भक्ति और मानवता है।
मनीष वैद्य
सचिव
वृद्ध सेवा आश्रम (VSA)🌿