विश्व हित में सनातन धर्म ही क्यों?

आज मानवता अनेक संकटों के दौर से गुजर रही है — पर्यावरण असंतुलन, नैतिक पतन, हिंसा, स्वार्थ और भौतिक अंधी दौड़। ऐसे समय में प्रश्न उठता है कि क्या कोई ऐसा दर्शन या मार्ग है जो सम्पूर्ण मानव जाति को संतुलन, शांति और सहअस्तित्व की राह दिखा सके?
उत्तर है — “सनातन धर्म”।

1. ‘सनातन’ — जिसका कोई आरंभ और अंत नहीं

“सनातन” शब्द का अर्थ ही है — जो सदा से है और सदा रहेगा। यह किसी व्यक्ति, पैगंबर या काल विशेष की देन नहीं है, बल्कि सृष्टि के नियमों और प्रकृति के शाश्वत सत्य पर आधारित है।
ऋग्वेद कहता है —

“एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति”
(सत्य एक है, ज्ञानी उसे अनेक नामों से पुकारते हैं)

यही विचार विश्व एकता और सहिष्णुता का सबसे प्राचीन सूत्र है।

2. प्रकृति के साथ संतुलन का संदेश

जहाँ आधुनिक सभ्यता ने प्रकृति को ‘उपभोग की वस्तु’ माना, वहीं सनातन धर्म ने प्रकृति को माता कहा।

“माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः” (अथर्ववेद)
अर्थात् — यह धरती हमारी माता है, हम इसके पुत्र हैं।

आज जब जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण विनाश मानवता को खतरे में डाल रहे हैं, तो यही दृष्टिकोण विश्व को बचा सकता है।

3. अहिंसा, करुणा और सह-अस्तित्व का मार्ग

सनातन धर्म का मूल दर्शन है — “वसुधैव कुटुम्बकम्” — पूरी पृथ्वी एक परिवार है।
यह दर्शन न किसी धर्म, जाति या सीमा में बंधा है, न किसी मत का विरोध करता है।
अहिंसा, सह-अस्तित्व, प्रेम और करुणा इसके जीवन-मूल्य हैं।
जहाँ अन्य विचारधाराएँ “मैं और मेरा” की सीमाओं में बंध जाती हैं, वहीं सनातन “सबका कल्याण” की बात करता है —

“सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।”

4. विज्ञान और अध्यात्म का संगम

सनातन धर्म ने सदा कहा — “ज्ञानं परमं बलम्।”
यहाँ विज्ञान और अध्यात्म विरोधी नहीं, पूरक हैं।
योग, आयुर्वेद, ज्योतिष, गणित, वास्तु, खगोल — ये सब विज्ञान के क्षेत्र हैं जिनकी जड़ें वेदों में हैं।
आज विश्व जब मानसिक तनाव और भौतिकता के अंधकार में भटक रहा है, तब योग और ध्यान (जो सनातन का उपहार हैं) पूरी दुनिया को मानसिक शांति दे रहे हैं।

5. मानव मात्र के कल्याण का धर्म

सनातन धर्म किसी विशेष समुदाय का धर्म नहीं, बल्कि मानवता का आचार-संहिता है।
यह किसी पर अपने मत को थोपता नहीं, बल्कि सत्य की खोज का मार्ग दिखाता है।
इसलिए यह केवल धर्म नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है।

और अंत में...

आज का युग तकनीकी प्रगति का है, परन्तु नैतिकता और मानवीयता की कमी से पीड़ित है।
ऐसे समय में यदि कोई दर्शन समस्त मानवता को जोड़ सकता है, तो वह है —
सनातन धर्म — जो सत्य, करुणा, संयम और सहअस्तित्व का प्रतीक है।

इसीलिए कहा गया —

“लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु।”
अर्थात् — सारे लोक सुखी हों, यही सनातन धर्म का सर्वोच्च संदेश है, और यही विश्व कल्याण का आधार।

मनीष वैद्य।
सचिव 
वृद्ध सेवा आश्रम (VSA)

Popular posts from this blog

ढलती उम्र में युवाओं की शादियां...

आपसबों से विनम्र आग्रह🙏बुजुर्गों को मदद करें...

आम जनता की सरकार के प्रति कई जिम्मेदारियां...