हर धर्म और संप्रदाय के नाम पर होता है अधर्म — आस्था की आड़ में अव्यवस्था का जाल✍️ लेखक : डॉ. मनीष वैद्य(वृद्ध सेवा आश्रम, रांची)



भूमिका :

भारत विविधता का देश है — यहाँ हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, हर समुदाय अपने-अपने विश्वास और परंपरा के अनुसार ईश्वर की आराधना करता है।
धर्म का उद्देश्य मानवता, प्रेम और सद्भावना है, परंतु विडंबना यह है कि आज हर धर्म और संप्रदाय में कहीं न कहीं अधर्म की छाया गहरी होती जा रही है।
आस्था का स्वरूप अब संयम से अधिक प्रदर्शन और प्रतिस्पर्धा में बदल चुका है।

1. हिंदू समाज में धर्म का दिखावा और अंधअनुकरण

हिंदू समाज में पूजा-पाठ, मेला, जुलूस, कथा, कीर्तन आदि आध्यात्मिक शक्ति का माध्यम हैं।
परंतु इन पवित्र आयोजनों में आज शोर, भीड़ और दिखावा हावी होता जा रहा है।

धार्मिक जुलूसों में DJ की धुनों पर नाचना अब सामान्य बात हो गई है।

सड़कों पर घंटों तक जाम लगाकर भक्तिभाव का प्रदर्शन किया जाता है।

मंदिरों में चढ़ावे की होड़ है — भक्ति से ज़्यादा भौतिकता प्रमुख हो गई है।

देवी-देवताओं के नाम पर पशु बलि, तंत्र-मंत्र, झाड़-फूंक और अंधविश्वास अब भी जारी हैं।

👉 यह सब धर्म नहीं — धर्म की आत्मा की हत्या है।
सच्चा धर्म संयम, सेवा और करुणा सिखाता है, न कि दिखावा और शोर।

2. इस्लामी समाज में कट्टरता और नियमों की गलत व्याख्या

इस्लाम शांति, अनुशासन और करुणा का धर्म है।
लेकिन समाज के कुछ हिस्सों में इसका अर्थ कट्टरता और हठधर्मिता के रूप में लिया जा रहा है।

नमाज़ और त्योहारों के अवसर पर कई बार सड़कें जाम हो जाती हैं, जिससे आम जनता को असुविधा होती है।

बकरीद जैसे त्योहारों पर पशु-बलि के नाम पर जीव हत्या की परंपरा आधुनिक संवेदना से टकराती है।

कुछ धार्मिक उपदेशक धर्म को साम्प्रदायिक पहचान से जोड़ देते हैं, जबकि कुरान मानवता और भाईचारे की शिक्षा देता है।

👉 इस्लाम की आत्मा “रहमतुल-आलमीन” — यानी समस्त सृष्टि पर दया — आज पुनः याद करने की आवश्यकता है।

3. सिख धर्म में भीड़ और राजनैतिक प्रभाव

सिख धर्म ने मानवता, सेवा और समानता का सबसे उज्ज्वल उदाहरण प्रस्तुत किया।
परंतु अब कई गुरुद्वारे धार्मिक केंद्र से अधिक राजनीतिक मंच बनते जा रहे हैं।

लंगर सेवा के नाम पर अपार भोजन की बर्बादी होती है।

गुरुपर्वों पर भव्य रैलियाँ और शोभायात्राएँ सड़क जाम का कारण बनती हैं।

युवा पीढ़ी में धार्मिक परंपरा से अधिक बाहरी आडंबर पर जोर बढ़ रहा है।

👉 सिख धर्म का मूल “सेवा” है, न कि “प्रदर्शन”। यह पहचान पुनः जीवित करनी होगी।

4. ईसाई समाज में पाखंड और प्रतिस्पर्धा का रूप

ईसाई धर्म प्रेम और क्षमा का प्रतीक है। परंतु यहाँ भी कुछ जगहों पर आस्था का स्थान संस्था-प्रतिस्पर्धा और रूप-रेखा ने ले लिया है।

बड़े-बड़े चर्चों में दिखावे और आयोजन पर भारी खर्च, जबकि निर्धनों की सेवा गौण।

कुछ मिशनरियों द्वारा धर्मांतरण की होड़ ने मानवता की जगह संख्या की राजनीति को जन्म दिया है।

सादगी और मसीह के उपदेशों की जगह वैभव और औपचारिकता बढ़ रही है।

👉 मसीह ने कहा था — “ईश्वर का राज्य तुम्हारे भीतर है।”
लेकिन आज वह भीतर से ज़्यादा बाहर की सजावट में ढूँढा जा रहा है।

5. बौद्ध, जैन और अन्य संप्रदायों में भी कठोरता और व्यावहारिकता की कमी

बौद्ध और जैन धर्म मूलतः अहिंसा, तप और आत्मसंयम के प्रतीक हैं।
परंतु समय के साथ इनमें भी कुछ व्यावहारिक कमियाँ उभर आई हैं।

बौद्ध अनुयायियों में अब “अनुष्ठान” अधिक और “ध्यान” कम हो गया है।

जैन समुदाय में अत्यधिक विधि-विधान और वर्ग विभाजन देखे जाते हैं।

इन संप्रदायों का उपदेश समाज की मुख्यधारा से कटकर “सीमित समूहों” में सिमट गया है।

👉 धर्म जब अपने चारदीवारी में बंद हो जाता है, तो वह समाज पर प्रभाव छोड़ना बंद कर देता है।

6. आधुनिक संप्रदायों और तथाकथित “गुरुओं” का व्यापारिक धर्म

आज के दौर में अनेक तथाकथित “आध्यात्मिक गुरु” धर्म को ब्रांड और बिज़नेस बना चुके हैं।
उनके प्रवचन सभाओं में धर्म कम, मार्केटिंग अधिक होती है।
धर्म का यह “कॉर्पोरेट रूप” समाज में भ्रम, पाखंड और लोभ को जन्म दे रहा है।

👉 धर्म यदि कमाई का साधन बन जाए, तो वह मानवता के विरुद्ध व्यापार है।

7. समाधान — धर्म में विवेक और आचरण की वापसी

हर धर्म को अपने भीतर झाँकना होगा।
हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि —

“समस्या धर्म में नहीं, उसके गलत प्रयोग में है।”

सच्चा धर्म वह है जो —

प्रकृति को प्रदूषित न करे,

किसी जीव को पीड़ा न दे,

समाज में प्रेम और अनुशासन बढ़ाए,

और सबसे बढ़कर — मनुष्य को मानव बनाए।

और अंत में:

आज आवश्यकता है कि धर्म को संवेदनशील विवेक से जोड़ा जाए।
हम सबकी पूजा-पद्धतियाँ भले अलग हों, लेकिन ईश्वर एक ही है — और वह किसी भी ऐसे कार्य से प्रसन्न नहीं होता जिससे किसी की हानि हो।
धर्म की सच्ची परिभाषा है —
अगर हर धर्मावलंबी यह संकल्प ले ले कि —

“मेरी पूजा से किसी की शांति न भंग हो,
मेरी आस्था से किसी को पीड़ा न पहुँचे,”
तो यह देश पुनः सच्चे धर्म और मानवता का प्रतीक बन सकता है।

जय सनातन 🙏 🚩

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