"फल न देगा सही, छांव तो देगा तुमको।पेड़ बूढ़ा ही सही, आँगन में लगा रहने दो।।"

समाज की यह सच्चाई है कि जब कोई चीज़ पुरानी हो जाती है, तो उसकी अहमियत कम कर दी जाती है। चाहे वह एक पुराना सामान हो, एक वृक्ष हो या फिर हमारे अपने वृद्धजन। लेकिन क्या सच में वृद्धावस्था केवल बोझ होती है? क्या उनकी उपस्थिति केवल एक जिम्मेदारी भर है?

"वृद्घ सेवा आश्रम" इसी सोच को बदलने का प्रयास कर रहा है। हम वृद्धों को सिर्फ सहारा देने के लिए नहीं, बल्कि उनके अनुभवों को सम्मान देने के लिए कार्यरत हैं। जिस तरह एक पुराना पेड़ भले ही फल न दे, लेकिन उसकी छाया शीतलता प्रदान करती है, उसी प्रकार वृद्धजनों का स्नेह, उनका मार्गदर्शन और उनका जीवन अनुभव हमें सही राह दिखा सकता है।

वृद्धावस्था: जीवन का अनमोल अनुभव

आज की भागदौड़ भरी दुनिया में युवा अपने करियर, परिवार और जिम्मेदारियों में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि वे अनजाने में ही अपने बुजुर्गों को अकेला छोड़ देते हैं। ऐसे में, वृद्ध आश्रम केवल एक छत देने का स्थान नहीं, बल्कि सम्मानजनक जीवन जीने की एक नई शुरुआत है।

हमारी संस्था का उद्देश्य न केवल वृद्धजनों को सुरक्षा और सेवा देना है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर और खुशहाल जीवन जीने के लिए प्रेरित करना भी है। यहां उन्हें उनके अनुभवों को साझा करने, कला और रुचियों को पुनर्जीवित करने और समाज के साथ पुनः जुड़ने का अवसर मिलता है।

संस्कारों का संरक्षण

हम जिस समाज में रहते हैं, वह बुजुर्गों की नींव पर ही खड़ा है। यदि हम अपनी जड़ों से कट जाएंगे, तो भविष्य में स्थिरता कैसे बनी रहेगी? वृद्धजन हमारे संस्कारों, परंपराओं और संस्कृति के संरक्षक हैं। यदि हम उनकी देखभाल करेंगे, तो आने वाली पीढ़ियाँ भी हमसे यही सीखेंगी।

हमारा संदेश

हमारी संस्था, "वृद्घ सेवा आश्रम," हर उस व्यक्ति को आमंत्रित करती है जो अपने माता-पिता, दादा-दादी या समाज के वृद्धजनों के प्रति प्रेम और सम्मान की भावना रखता है। यह केवल एक संस्था नहीं, बल्कि एक परिवार है, जो यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी बुजुर्ग अकेलेपन की पीड़ा न सहे।

आइए, मिलकर यह संकल्प लें कि जिस तरह हम किसी पुराने पेड़ को सिर्फ इसलिए नहीं काटते क्योंकि वह फल नहीं देता, उसी तरह हम अपने वृद्धजनों को केवल उम्र के कारण उपेक्षित नहीं करेंगे। उनकी छांव में हम भी सुरक्षित रहेंगे और हमारे बच्चे भी इसी परंपरा को आगे बढ़ाएंगे।

"क्यों मिटाते हो जड़ें अपनी ही बगिया की?
छांव देते हैं जो, वो बूढ़े दरख्त ही सही।"

डॉ मनीष वैद्य। 
सचिव 
"वृद्ध सेवा आश्रम",रांची

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