"संघर्ष की गोद में शिक्षा – आशा की एक किरण
"वृद्ध सेवा आश्रम, रांची 🌿 की ओर से...
एक झोपड़ी, टूटी फूटी जमीन, और मां की गोद में पलता भविष्य – यह दृश्य हमें यह सोचने पर विवश करता है कि संसाधनों की कमी के बावजूद यदि इच्छा हो, तो शिक्षा की लौ हर अंधेरे को चीर सकती है।
आज जब हम वृद्ध सेवा आश्रम, रांची 🌿 में बुजुर्गों की सेवा करते हैं, तो यह दृश्य हमें हमारे मिशन की जड़ से जोड़ता है – "सम्मान, सेवा और संवेदना"। जिस मां ने अपने बेटे को गोद में बैठाकर, खुद अनपढ़ होते हुए भी अक्षर ज्ञान देने की कोशिश की, वही मां एक दिन वृद्धावस्था में समाज की उपेक्षा झेले, यह अन्याय है।
हम क्या कह रहे हैं?
👉 शिक्षा सिर्फ स्कूलों में नहीं, संस्कारों से भी मिलती है।
👉 जो मां-बाप हमें चलना, बोलना, पढ़ना सिखाते हैं – क्या हम उन्हें बुजुर्ग होने पर भुला देते हैं?
👉 अगर इस चित्र में दिख रही मां एक दिन अकेली रह जाए, तो क्या हम जैसे समाज का कोई दायित्व नहीं बनता?
हमारा आह्वान – एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक सम्मान की परंपरा
वृद्ध सेवा आश्रम, रांची 🌿 सिर्फ एक संस्था नहीं, एक आंदोलन है –
जिसका उद्देश्य है कि हर बुजुर्ग को सम्मान और सुरक्षा मिले, और समाज यह समझे कि "बुढ़ापा बोझ नहीं, अनुभव की गठरी है।"
हम आपसे निवेदन करते हैं –
🌱 उस मां के संघर्ष को मत भूलिए,
🌱 उस बच्चे के भविष्य को मजबूत कीजिए,
🌱 और उस मां-बाप के बुढ़ापे को अकेलापन न बनने दीजिए।
हमारे अभियान से जुड़ें:
📌 झारखंड के हर गांव-शहर में हम बुजुर्गों की पहचान कर रहे हैं।
📌 हम उन्हें ₹1100 सदस्यता के साथ जोड़ रहे हैं ताकि उन्हें सुरक्षा और सम्मान की छांव मिले।
📌 हम 1100 फील्ड वर्कर नियुक्त कर रहे हैं – हर युवा, हर नागरिक इसमें भागीदार बन सकता है।
🙏 आइए, इस चित्र को सिर्फ कला न मानें, बल्कि एक सामाजिक दस्तावेज मानें।
📚 यह हमें प्रेरणा देता है कि संघर्ष से शिक्षा और सेवा दोनों को जोड़ा जाए।
🌿 वृद्ध सेवा आश्रम, रांची – जहां बुजुर्गों का आज भी भविष्य की तरह उज्ज्वल हो सकता है।
डॉ मनीष वैद्य।
सचिव
वृद्ध सेवा आश्रम, रांची
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