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मैं भी चला वृद्धावस्था की ओर, समय की छाया संग लिए, अनुभवों की गठरी भारी, पर मन अब भी उमंग लिए...

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मैं भी चला वृद्धावस्था की ओर, समय की छाया संग लिए, अनुभवों की गठरी भारी, पर मन अब भी उमंग लिए... 50-55 वर्ष पार करने के बाद जीवन की गति भले ही धीमी हो गई है, लेकिन इसका आनंद बढ़ गया है। अनुभवों की संपत्ति, रिश्तों की गहराई, स्वास्थ्य की जागरूकता और समाज के प्रति योगदान की भावना इसे और भी खूबसूरत बना रही है। यह उम्र स्वयं को नए सिरे से खोजने और जीवन के वास्तविक अर्थ को समझने के लिये काफी है। हमारे सोचने का तरीका और व्यक्तित्व समय के साथ बदल गया है, और इसका मुख्य कारण जीवन के अनुभव, समाजिक परिवेश, और व्यक्तिगत जिम्मेदारियाँ हैं। उम्र के अलग-अलग पड़ावों पर इंसान की मानसिकता अलग होती है, जो उसकी प्राथमिकताओं और जीवन के प्रति दृष्टिकोण को प्रभावित करती है। बाल अवस्था... बचपन में व्यक्ति का दिमाग नई चीजों को सीखने और समझने में लगा रहता है। इस समय उसके सोचने का तरीका जिज्ञासा, कल्पनाशीलता और मासूमियत से भरा होता है। किशोरावस्था में आत्म-अन्वेषण का दौर शुरू होता है, जहाँ व्यक्ति अपने अस्तित्व, मूल्यों और स्वतंत्रता के बारे में सोचने लगता है। इस दौरान विद्रोही प्रवृत्ति और प्रयोग कर...

भारत में आरक्षण,जातीय नहीं, सिर्फ आर्थिक आधार पर क्यों...?--------------------------

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भारत में आरक्षण,जातीय नहीं, सिर्फ आर्थिक आधार पर क्यों...? -------------------------- भारत में आरक्षण नीति का मूल उद्देश्य वंचित समुदायों को समान अवसर प्रदान करना था, लेकिन आज यह एक विवादास्पद विषय बन चुका है। वर्तमान में आरक्षण जातिगत आधार पर दिया जाता है, जिसका उद्देश्य ऐतिहासिक अन्याय को दूर करना था। हालांकि, बदलते समय और सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए अब आरक्षण को केवल आर्थिक आधार पर देने की आवश्यकता है। आरक्षण की शुरुआत स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के उत्थान के लिए की गई थी। बाद में, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को भी इसमें जोड़ा गया। इसका उद्देश्य उन वर्गों को मुख्यधारा में लाना था, जो सदियों से शिक्षा और रोजगार में पीछे थे। लेकिन आज, जब कुछ जातियों के लोग आर्थिक रूप से समृद्ध हो चुके हैं, वहीं कुछ अन्य जातियों के लोग अब भी गरीब हैं, तो केवल जाति के आधार पर आरक्षण देना न्यायसंगत नहीं लगता। वर्तमान समय में गरीब केवल SC, ST, OBC में ही नहीं, बल्कि सामान्य वर्ग में भी बड़ी संख्या में हैं। जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, उन्हें समान अवसर मिलना ...

समाज और देश के प्रति हमारी जिम्मेदारी...

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समाज और देश के प्रति हमारी जिम्मेदारी... हर नागरिक का यह कर्तव्य होता है कि वह अपने समाज और देश के विकास में योगदान दे। एक सशक्त राष्ट्र तभी बन सकता है जब उसके नागरिक अपनी जिम्मेदारियों को समझें और ईमानदारी से उनका पालन करें। समाज और देश के प्रति हमारी जिम्मेदारियां कई स्तरों पर होती हैं—नैतिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय। 1. नैतिक जिम्मेदारी... हमारा पहला कर्तव्य है कि हम नैतिक रूप से सही आचरण करें। ईमानदारी, सत्यता, दूसरों के प्रति सम्मान और समानता जैसे मूल्यों को अपनाकर हम समाज में सद्भावना बनाए रख सकते हैं। बच्चों को अच्छे संस्कार देना और समाज में नैतिकता की भावना को प्रोत्साहित करना हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी है। 2. सामाजिक जिम्मेदारी... हम जिस समाज में रहते हैं, उसका विकास और शांति बनाए रखना हमारा कर्तव्य है। इसमें गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता, शिक्षा के प्रचार-प्रसार, महिलाओं एवं वृद्धजनों के सम्मान और समाज में फैली कुरीतियों को मिटाने का कार्य शामिल है। जातिवाद, छुआछूत, दहेज प्रथा और अंधविश्वास जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाना भी हमारी जिम्मेदा...

बुजुर्गों का अकेलापन और बाल श्रम...

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बुजुर्गों का अकेलापन और बाल श्रम... आज की भागदौड़ भरी दुनिया में अकेलेपन और बच्चों की नौकरियों का मुद्दा गंभीरता से सोचने योग्य है। एक तरफ बुजुर्ग और अकेले होते लोग हैं, जिन्हें सामाजिक सहयोग की आवश्यकता होती है, तो दूसरी ओर ऐसे बच्चे हैं जिन्हें शिक्षा और बचपन के आनंद से दूर करके श्रम में झोंक दिया जाता है। इन दोनों समस्याओं का समाधान यदि एक साथ खोजा जाए, तो समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। समाज में एकाकी जीवन जीने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसके कई कारण हैं- एकल परिवारों का प्रचलन बढ़ रहा है, जिससे बुजुर्ग माता-पिता अकेले रह जाते हैं। युवा वर्ग अपने करियर में व्यस्त रहता है, जिससे बुजुर्गों को सामाजिक समर्थन कम मिलता है। कई बुजुर्ग आर्थिक रूप से सक्षम होने के बावजूद अकेलेपन और डिप्रेशन का शिकार होते हैं। बचपन छिनती नौकरियाँ... दूसरी ओर, बाल श्रम समाज के लिए एक गंभीर समस्या बनी हुई है। कई गरीब बच्चे शिक्षा और खेल-कूद के अधिकार से वंचित होकर छोटी उम्र में ही काम करने लगते हैं। इसके कई कारण हैं जैसे  परिवार की खराब आर्थिक स्थिति के चलते बच्चे कमाने ...

आदमी सिर्फ इंसान बने – तभी परिवार, समाज और राष्ट्र की सभी समस्याओं का समाधान...

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आज के दौर में समाज अनेक समस्याओं से जूझ रहा है—परिवार टूट रहे हैं, समाज में भेदभाव और वैमनस्यता बढ़ रही है, और राष्ट्र में राजनीतिक व सामाजिक अस्थिरता देखने को मिल रही है। इन सभी समस्याओं का यदि मूल कारण खोजा जाए, तो एक ही उत्तर मिलेगा—आदमी का इंसानियत से दूर होना। यदि आदमी सच में इंसान बने, यानी संवेदनशील, ईमानदार, और नैतिक मूल्यों वाला व्यक्ति बने, तो परिवार, समाज और राष्ट्र की अधिकांश समस्याएँ स्वतः समाप्त हो जाएँगी। परिवार समाज की सबसे छोटी इकाई है, और यदि यहाँ शांति और सद्भाव बना रहे, तो समाज और राष्ट्र भी सशक्त होंगे। लेकिन आजकल रिश्तों में दरार, विवाह-विच्छेद और पारिवारिक विवाद बढ़ते जा रहे हैं। इसका मूल कारण है—स्वार्थ, असहनशीलता और अहंकार। यदि हर व्यक्ति इंसानियत को प्राथमिकता दे, रिश्तों में त्याग और समझदारी अपनाए, तो परिवारिक तानाबाना मजबूत रहेगा और संतानें भी अच्छे संस्कारों से युक्त होंगी, जिससे आगे समाज और राष्ट्र को भी अच्छे नागरिक मिलेंगे। समाज में जाति, धर्म, भाषा, वर्ग आदि के आधार पर बंटवारा बढ़ता जा रहा है। अपराध, भ्रष्टाचार, हिंसा और नफरत जैसी प्रवृत्तिय...

वर्तमान की खुशी के कारण, भविष्य की बर्बादी आज के (सभी नहीं)अधिकतर युवाओं की सोच पर एक चिंतन...

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आज के दौर में युवाओं की सोच और उनकी जीवनशैली तेजी से बदल रही है। तकनीक, सोशल मीडिया और उपभोक्तावाद के प्रभाव में, कई युवा तात्कालिक सुख-सुविधाओं को सर्वोच्च प्राथमिकता देने लगे हैं, भले ही इसके कारण उनका भविष्य दांव पर लग जाए। आज का युवा क्षणिक आनंद को ही जीवन की सफलता मानने लगा है। नशा, सोशल मीडिया पर दिखावा, बेवजह के खर्च, और बिना सोचे-समझे लिए गए निर्णय—इन सभी का प्रभाव उनके भविष्य पर पड़ता है। वे यह भूल जाते हैं कि आज की लापरवाही कल की परेशानी बन सकती है। आज के युवा त्वरित आनंद के लिए आर्थिक स्थिरता को नजरअंदाज कर देते हैं। महंगे गैजेट्स, ब्रांडेड कपड़े, लक्जरी यात्रा, और पार्टियों पर अनावश्यक खर्च करके वे अपने भविष्य की बचत को नष्ट कर देते हैं। क्रेडिट कार्ड और लोन की आसान उपलब्धता उन्हें बिना सोचे-समझे खर्च करने के लिए प्रेरित करती है, जिससे वे कर्ज के जाल में फंस जाते हैं। कुछ युवा पढ़ाई और करियर की गंभीरता को नहीं समझते। वे आसान रास्ते अपनाकर जल्द से जल्द पैसे कमाना चाहते हैं, लेकिन बिना ठोस ज्ञान और मेहनत के स्थायी सफलता संभव नहीं होती। कई लोग करियर बनाने की जगह शॉ...

वृद्ध सेवा आश्रम,रांची: आइए, हम साथ मिलकर सम्मान और सेवा का संकल्प लें...

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समाज की असली पहचान उसके संस्कारों और संवेदनशीलता से होती है। हम कितने भी आधुनिक हो जाएँ, लेकिन यदि हमने अपने माता-पिता समान वृद्धजनों के प्रति सम्मान और दायित्व को भुला दिया, तो हमारा विकास अधूरा रह जाएगा। आज, जब दुनिया भागदौड़ में उलझी है, कई वृद्धजन अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में अकेलेपन, उपेक्षा और असहायता का दर्द झेल रहे हैं। जिन हाथों ने हमारे बचपन को थामा था, वे अब मदद के लिए बढ़ रहे हैं। लेकिन क्या हम उन हाथों को थामने के लिए तैयार हैं? आपका साथ – उनकी मुस्कान "वृद्ध सेवा आश्रम",रांची सिर्फ़ एक संस्था नहीं, बल्कि एक भावनात्मक संकल्प है, जो इन बुजुर्गों को प्रेम, सम्मान और सुरक्षा देने के लिए समर्पित है। यह आश्रम उन सभी के लिए एक परिवार है, जो जीवन के इस मोड़ पर अपनापन तलाश रहे हैं। आज हम आपसे एक विशेष अनुरोध करते हैं— आइए, हमारे साथ आजीवन सदस्य बनकर इस पुनीत कार्य में सहभागी बनें। आपका यह छोटा-सा संकल्प न केवल एक वृद्धजन की ज़िंदगी में खुशी ला सकता है, बल्कि समाज में एक सकारात्मक संदेश भी देगा कि "हम अपने संस्कारों को नहीं भूल सकते।" आपकी सदस्यता से...