मैं भी चला वृद्धावस्था की ओर, समय की छाया संग लिए, अनुभवों की गठरी भारी, पर मन अब भी उमंग लिए...
मैं भी चला वृद्धावस्था की ओर, समय की छाया संग लिए, अनुभवों की गठरी भारी, पर मन अब भी उमंग लिए... 50-55 वर्ष पार करने के बाद जीवन की गति भले ही धीमी हो गई है, लेकिन इसका आनंद बढ़ गया है। अनुभवों की संपत्ति, रिश्तों की गहराई, स्वास्थ्य की जागरूकता और समाज के प्रति योगदान की भावना इसे और भी खूबसूरत बना रही है। यह उम्र स्वयं को नए सिरे से खोजने और जीवन के वास्तविक अर्थ को समझने के लिये काफी है। हमारे सोचने का तरीका और व्यक्तित्व समय के साथ बदल गया है, और इसका मुख्य कारण जीवन के अनुभव, समाजिक परिवेश, और व्यक्तिगत जिम्मेदारियाँ हैं। उम्र के अलग-अलग पड़ावों पर इंसान की मानसिकता अलग होती है, जो उसकी प्राथमिकताओं और जीवन के प्रति दृष्टिकोण को प्रभावित करती है। बाल अवस्था... बचपन में व्यक्ति का दिमाग नई चीजों को सीखने और समझने में लगा रहता है। इस समय उसके सोचने का तरीका जिज्ञासा, कल्पनाशीलता और मासूमियत से भरा होता है। किशोरावस्था में आत्म-अन्वेषण का दौर शुरू होता है, जहाँ व्यक्ति अपने अस्तित्व, मूल्यों और स्वतंत्रता के बारे में सोचने लगता है। इस दौरान विद्रोही प्रवृत्ति और प्रयोग कर...